Published - 13 Aug 2020 by Tractor Junction
देश में इस बार मानसून की बारिश करीब-करीब सभी जगह अच्छी हुई है। कुछ राज्यों में तो बारिश की अधिकता से बाढ़ तक आ गई। इसमें असम व बिहार में बाढ़ आने से खेती को काफी नुकसान पहुंचा। बिहार में धान की फसल को नुकसान पहुंचा और धान के खेत में पानी भर गया। इससे धान की खेती काफी प्रभावित हुई।
बिहार के 14 जिलों की करीब 70 लाख से अधिक आबादी बाढ़ से प्रभावित है। हजारों हेक्टेयर में लगी धान व अन्य फसलें बह गई हैं। कई इलाके ऐसे भी हैं जहां किसानों को धान की रोपनी का भी मौका नहीं मिला। हालांकि कई ऐसे इलाके भी हैं जहां से पानी उतरने भी लगा है और अब कुछ किसान खाली जगह देख वहां धान लगा रहे हैं. लेकिन, विशेषज्ञों की मानें तो यह तरीका कारगर नहीं है।
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ऐसे इलाकों में जहां बाढ़ से फसलें नष्ट हो जाती है वहां सीड बॉल कॉन्सेप्ट का सहारा लिया जा सकता है। इस प्रयोग को पहले भी कई बार अजमाया गया है और यह सफल रहा है। जब बाढग़्रस्त क्षेत्रों में पानी उतरने के बाद मिट्टी गीली रहती है तब इस तकनीक से मिट्टी के गोले बनाकर उसमें बीज डालकर खेत में फेंक दिया जाता है या मिट्टी में बीज को दबा देना होता है।
यह तकनीक ऐसे इलाकों के लिए कारगर है जहां प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट हो जाती है। तब इस तकनीक के द्वारा फसल उगाई जा सकती है। भारत में अनेक लोग इस विधि से खेती करते है। भारत के लोगों ने इसे सबसे पहले अपनाया है इसलिए भारत में यह इस विधि का प्रणेता फार्म के रूप में जाना जाता है। इसे हम ऋषि खेती के नाम से करते हैं।
सीड बॉल एक ऐसा बीज है जिसे मिट्टी की सामग्री में लपेटा जाता है, आमतौर पर मिट्टी और खाद का मिश्रण होता है और फिर सूख जाता है। अनिवार्य रूप से, बीज पूर्व-रोपित है और प्रजाति के लिए उपयुक्त कहीं भी बीज की गेंद को जमा करके बोया जा सकता है, जब तक उचित अंकुरण खिडक़ी नहीं उठती तब तक बीज को सुरक्षित रूप से रखा जाता है। बीज की गेंदें एक तरह से पौधों की खेती करने का एक आसान और टिकाऊ तरीका है जो समय की एक बड़ी खिडक़ी प्रदान करता है जब बुवाई हो सकती है।
इस तकनीक में धान के बीज को गाय मूत्र और पानी में रात भर रखकर गीले जूट के बोरे में छोड़ दिया जाता है। रात भर में जब बीज अंकुरित हो जाता है तो इसे देशी तरीके से तैयार ऋषि खाद जिसमें चिकनी मिट्टी, वर्मी कम्पोस्ट, राख, गो मूत्र को मिलाकर लिट्टी जैसे गोल-गोल शेप बनाते हैं। उसके बीच में दो चार अंकुरित धान बीज रखकर उसे खेत में रख कर 2/3 मिट्टी से ढक दिया जाता है। कुछ अंकुरित बीजों को ऐसे ही खेत में फेंक दिए जाते है। इससे बाढ़ से होने वाले नुकसान का भी कोई खतरा नहीं है, साथ ही उपज भी परंपरागत रोपण से दोगुनी प्राप्त होती है। इसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग न होने से पर्यावरणीय समस्याएं भी नहीं होती हैं।
सीडबाल से जंगली पेड़, अर्धजंगली पेड़, फलदार पेड़, चारे के पेड़, अनाज सब्जियां आदि सब एक साथ ऊगा सकते हैं। इस तकनीक में फसलों पर छाया का असर नहीं होता है। इस प्रकार बहुत कम जगह से बहुत अधिक पैदावार ली जा सकती है।
इस विधि से फसल उगाने से लागत और श्रम बहुत कम हो जाता है। इसे कोई भी महिला या बच्चा कर सकता है। फसल और खेत की गुणवत्ता में हर साल इजाफा होते जाता है। बरसात का पानी खेत के द्वारा सोख लिया जाता है। भूमि छरण ,जैव -विविधताओं का छरण रुक जाता है। मरुस्थल हरियाली में तब्दील हो जाते हैं। फसलों का स्वाद बहुत बढ़ जाता है।
• कभी कभी ऊगते समय जब सीड बॉल से बीज अंकुरित होने लगते हैं उन्हें चींटी आदि खा लेती हैं ऐसी परिस्थिति में हम सीड बॉल बनाते समय गाजर घास की पत्तियों को पीस कर मिला देते हैं। जिस से चीटियां नहीं खाती हैं। अन्य कोई देशी स्थानीय उपाय भी किया जा सकता है। एक बार तेज बारिश होने पर चींटी आदि नहीं रहते हैं।
• सीड बॉल उगाते समय पिछली फसल का स्ट्रॉ बहुत सहायक रहता है। नीचे सीड बॉल ऊपर स्ट्रॉ कवर सबसे उत्तम उपाय है। यदि नहीं है तो ग्राउंड कवर को ऊगने देना चाहिए फिर इस कवर में सीड बॉल डाल दिया जा सकता है।
• सीड बॉल बनाते समय गोली का साइज बीज के अनुसार बड़ा होना चाहिए मसलन गोली के ऊपर बीज नहीं दिखने चाहिए और गोली चिकनी ,मजबूत बनना चाहिए।
• कुदरती खेती में खरपतवार कोई समस्या नहीं रहती है इसलिए सीड बॉल बनाकर डालना एक मात्र काम रह जाता है।
वार्षिक बाढ़ के बाद प्राचीन मिस्रियों द्वारा द नील नदी के आवर्ती बैंकों को सीड करने के लिए सीड बॉल का इस्तेमाल किया जा सकता है। अंकुरण के लिए परिस्थितियां अनुकूल होने तक बीज को सुरक्षित रखने की उनकी क्षमता के कारण एशिया और अन्य जगहों पर, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में, उनका उपयोग किया गया है और जिस आसानी से उन्हें वितरित किया जा सकता है।
1700 के दशक में कैरोलिना में, पश्चिम अफ्रीकी दासों, मुख्य रूप से महिलाओं को, एक बीज बॉल तकनीक का उपयोग करके चावल की खेती करने के लिए लाया गया था जो अफ्रीका में इस्तेमाल किया गया था। चावल के बीज मिट्टी में लिपटे, सूख गए, और पैर की एड़ी के साथ मिट्टी के फ्लैटों में दबा दिए गए। इसने दो उद्देश्यों की सेवा की, पक्षियों से बीज की रक्षा की, और खेतों में पानी भर जाने पर इसे तैरने से भी रोका।
अभी हाल ही में, जापानी कृषि पाखण्डी, मसानोबु फुकुओका, ने जापान में खाद्य उत्पादन में सुधार करने में मदद करने के लिए बीज गेंदों (जापानी में नेन्डो डांगो) के उपयोग की खोज शुरू की। उनके शोध और आउटरीच प्रयासों ने सीड बॉल को फिर से लोगों की नजरों में ला दिया।
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