Published - 16 Oct 2020 by Tractor Junction
किसानों को फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेती की ओर काफी ध्यान देना पड़ता है। किसानों को हर माह अपनी फसल से संबंधित कई कार्य करने पड़ते हैं जिनमें कब किस फसल को बोना और मौसम के अनुसार उसकी देखभाल करना ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है। यदि समय पर बुवाई नहीं की जाए तो उत्पादन तो घटता ही साथ ही अगली फसल लेने में भी देरी हो जाती है। इसके अलावा बुवाई से लेकर कटाई तक कई कार्य किसान को फसल उत्पादन के बीच करने पड़ते हैं। आज हम आपको इन्हीं कार्यों में से इस अक्टूबर माह के दूसरे पखवाड़े में किए जाने वाले कार्यों की जानकारी दे रहे हैं। हम आशा करते हैं कि यह जानकारी हमारे किसान भाइयों के लिए उपयोगी साबित होगी। तो आइए जानते हैं अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में किए जाने वाले प्रमुख फसलों के संबंध में किए जाने वाले कृषि संबंधी कार्यों के बारे में।
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जिन किसानों ने धान की फसल बो हुई है और वे दुज्धावस्था में हैं और उसमें झुलसा रोग के कारण यदि पत्तियों के नोक व किनारे सूखने लग गए हो तो उन्हें इसकी रोकथाम के लिए उन्हें एग्रीमाइसीन 75 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम व 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कारना चाहिए। एक बात का ध्यान रखें इस दौरान खेत मेें पानी भरा हो तो उसे पहले निकल दें इसके बाद इस घोल का छिडक़ाव करें।
वहीं तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए ट्राइकोग्रामा नामक परजीवी को 8-10 दिन के अंतराल पर छोडऩा चाहिए। क्लोरो-पायरीफास 20 इ.सी. 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए। इसके अलावा यदि गंधीबग कीट की समस्या हो तो इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण प्रति हेक्टेयर 25-30 किग्रा की दर से फूल आने के समय बुरकाव करें। यदि धान में भूरे फुदके का प्रकोप हो तो इसकी रोकथाम के लिए खेत से पानी निकाल दें। नीम आयल 1.5 लीटर अथवा बी.पी.एम.सी. 500 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रयोग करें।
वहीं चूहों के नियंत्रण के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्युमिनियम फास्फेट की गोली का प्रयोग करना चाहिए। धान की अगेती फसल की कटाई इस माह अवश्य कर लें। ताकि खेत खाली होने पर अन्य फसल की बुवाई समय पर की जा सके।
असिंचित क्षेत्रों में गेहूं बोने का कार्य अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से शुरू किया जा सकता है। असिंचित क्षेत्रों के लिए के लिए मगहर के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के 9251, एवं एच डी आर 77 आदि किस्में उपयुक्त मानी जाती है। अधिकतर गेहूं की बुवाई धान की फसल के बाद ही की जाती है, इसलिए खेत की जुताई करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
चना की बोआई माह के दूसरे पखवाड़े में कर सकते हैं। इसके लिए पूसा-256, अवरोधी, राधे, के-850 तथा ऊसर क्षेत्र में बोआई के लिए करनाल चना-1 उन्नत प्रजातियों का चुनाव कर सकते हैं। इसके अलावा काबुली चना की चमत्कार, पूसा-1003, शुभ्रा भी अच्छी किस्में हैं। बोआई के समय कूंड़ में या अंतिम जुताई के समय 100-150 किग्रा डी.ए.पी. का प्रयोग करना चाहिए।
इस पखवाड़े मटर की बोआई की जा सकती है। इसकी बुवाई के लिए रचना, पन्त मटर-5, अपर्णा, मालवीय मटर-2, मालवीय मटर-15, शिखा एवं सपना अच्छी किस्में मानी गई हैं। दाने के लिए प्रति हेक्टेयर 80-100 किग्रा तथा बौनी किस्मों के लिए 125 किग्रा बीज आवश्यक होती है। बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फेट व 30-40 किग्रा पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।
सरसों बारानी क्षेत्र बुवाई 15 अक्टूबर तक व सिंचित क्षेत्र में 30 अक्टूबर तक की जा सकती है। लेकिन इस बार तापमान में तेजी के कारण इसकी बुवाई राजस्थान में अब की जाएगी। सरसों की बारानी क्षेत्र में बुवाई के लिए 5-6 कि.ग्रा. तथा सिंचित क्षेत्र में बुवाई के लिए 4.5-5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टयेर की दर से बीज की आवश्यकता होती है।
सरसों की उन्नत किस्मों में जवाहर सरसों-2, जवाहर सरसों-3, राज विजय सरसों-3 आदि शामिल हैं। किसान किस्म का चयन अपने क्षेत्र की जलवायु व मिट्टी की उर्वरकता को ध्यान में रखकर करें। बुवाई देशी हल या सरिता या सीड ड्रिल से कतारों में करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी., पौधें से पौधे की दूरी 10-12 सेमी. एवं बीज को 2-3 से.मी. से अधिक गहरा न बोयें, अधिक गहरा बोने पर बीज के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर मक्का की बुवाई अक्टूबर के अंत में की जा सकती है। संकर प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 18-20 किग्रा व संकुल प्रजातियों के लिए 20-25 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। शीतकालीन मक्का के लिए इसकी संकर किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। इसमें पैदावार की दृष्टि से पूसा विवेक क्यूपीयेम 9 उन्नत और पूसा एचएम 4 उन्नत संकर किस्म मानी जाती है।
अरहर की अगेती फसल में फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर मोनोक्रोटोफास 36 ई. सी. 800 मिलीलीटर या कार्बराइल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2 किग्रा 800 लीटर पानी में घोलकर 15-20 दिन के अन्तराल पर दो छिडक़ाव करें।
असिंचित क्षेत्रों में जौ की बोआई 20 अक्टूबर से शुरू कर सकते हैं। असिंचित क्षेत्रों के लिए के-141, के-560 (हरितिमा), गीतांजलि, लखन तथा उसरीली भूमि के लिए आजाद अच्छी किस्म है। प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए 80-100 किग्रा बीज का प्रयोग करें।
बुवाई के 20 दिन के अन्दर निराई-गुड़ाई कर दें साथ ही सघन पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी कर दें। सितंबर में बोई गई फसल में बुवाई के बाद 25-30 दिन पर पहली सिंचाई कर दें तथा प्रति हेक्टेयर 50 किग्रा नाइट्रोजन (108 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग करें।
गन्ने में इस समय कई स्थानों पर रेड रॉट रोग का प्रकोप उत्तरप्रदेश के जिलों में देखा जा रहा है। इस रोग से गन्ने की फसल को बचाने के लिए संक्रमित पौधे को जड़ से उखाडक़र नष्ट कर दें। उस जगह पर 10-20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का बुरकाव करें। उस जगह पर 0.2 प्रतिशत थायो फेनेट मेथिल/कार्बेन्डाजिम को जड़ों के पास मिट्टी में डाले। 0.1 फीसदी थायो फेनेट मेथिल/काबेन्डाजिम/ टिबूकोनाजोल सिस्टेमेटिक फफूंदी नाशक का छिडक़ाव करें।
यह समय मूंगफली की फलियों की वृद्धि अवस्था का है। इस समय सिंचाई करनी आवश्यक हो जाती है जिससे दाना अच्छा होता है। इसलिए इस अवस्था में फलियों की सिंचाई अवश्य करेंं।
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