बढ़ते तापमान से गेहूं व जौ को नुकसान, फसल बचाने के लिए किसान करें यह काम

Share Product प्रकाशित - 04 Apr 2025 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

बढ़ते तापमान से गेहूं व जौ को नुकसान, फसल बचाने के लिए किसान करें यह काम

जानें, बढ़ते तापमान से गेहूं की फसल को क्या हो सकता है नुकसान और इसके लिए क्या करें उपाय

देश के कई राज्यों में तापमान काफी बढ़ गया है और दोपहर के समय धूप इतनी तेज हो गई है कि खड़ा रहना भी मुश्किल हो जाता है। इस बढ़ते तापमान का प्रभाव मनुष्यों पर ही नहीं फसलों पर भी साफ दिखाई दे रहा है। कई जगह पर गेहूं व जौ की खड़ी फसल पर इस बढ़ते तापमान के कारण समस्या हो रही है। हालांकि गेहूं की कटाई का काम कई जगहों पर शुरू हो गया है, तो कई जगह पर चल रहा है। वहीं कुछ किसानों ने देरी से बुवाई की है वे अब कटाई का काम शुरू करेंगे। ऐसे में बढ़ता तापमान गेहूं व जौ की खड़ी फसलों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। इस मौसम में किसानों को गेहूं व जौ की फसलों की इस बढ़े हुए तापमान से सुरक्षा करना बेहद जरूरी हो जाता है। बढ़ते तापमान को देखते हुए कृषि जानकारों व विशेषज्ञाें ने इस फसल को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई है और इसकी सुरक्षा के उपाय भी बताए हैं।

बढ़ते हुए तापमान से गेहूं को नुकसान  

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि तापमान समान्य से अधिक बढ़ता है तो देरी से बोई गई गेहूं की फसल पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है। गेहूं के परागण के समय अधिकतम तापमान 30 सेंट्रीग्रेड से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि तापमान 35 डिग्री से ऊपर हो जाता है तो फसल पर नुकसान की संभावना अधिक हो जाती है। लेकिन कई जगहों पर तापमान अभी से ही 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा है जो गेहूं की फसल के लिए सही नहीं है। इससे गेहूं की फसल को नुकसान हो सकता है। अधिक तापमान के कारण गेहूं की क्ववालिटी खराब हो सकती है जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है। क्योंकि खराब या हल्की क्वालिटी वाले गेहूं के भाव कम मिलते हैं। 

अधिक तापमान से क्या हो सकता है नुकसान

अधिक तापमान के प्रभाव से गेहूं की फसल पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है। बढ़े तापमान से मिट्‌टी में नमी कम हो जाती है जिससे सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। अधिक तापमान से गेहूं की फसल को जो नुकसान हो सकते हैं, वे इस प्रकार से हैं– 

  • अधिक तापमान से गेहूं की फसल में दाना सही से नहीं बनना। 
  • अधिक तापमान से गेहूं की बालियों की संख्या कम हो जाना। 
  • अधिक तापमान से गेहूं के दाने का सिकुड़ जाना। 
  • गेहूं के दाने बनने की अवस्था में अधिक तापमान से उपज की क्वालिटी खराब होना।
  • अधिक तापमान से गेहूं के उत्पादन में कमी आना। 
  • गेहूं के दानों का वजन कम हो जाना।
  • गेहूं के दानों का भराव कम होना, दाना हल्का रह जाना आदि। 

गेहूं की फसल को कैसे प्रभावित करता है अधिक तापमान

अधिक तापमान से गेहूं व जौ की फसल को खतरा हो सकता है। गर्मी के कारण फसलों में पराग और पुंकेसर निष्क्रिय हो जाते हैं। इससे परागण प्रभावित होता है और भ्रूण का विकास रुक जाता है। भ्रूण का विकास अवरूद्ध होने से दानों की संख्या में कमी आ जाती है। दानों का आकार प्रभावित होता है और उनका वजन कम हो जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अधिक तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए किसान कुछ उपाय कर सकते हैं। इनमें से कुछ  उपाय इस प्रकार से हैं– 

  • किसान फसलों की हल्की सिंचाई करें ताकि खेत में नमी बनी रहे और फसल पर तापमान का प्रभाव कम हो। 
  • देर से बाई गई फसल में पोटेशियम नाइट्रेट (13:0:45), चिलेटेड जिंक व चिलेटेड मैगजीन का छिड़काव फायदेमंद बताया गया है। 
  • गेहूं और जौ की फसलों में दाना भराव और दाना निर्माण के समय सीलिसिक अम्ल 15 ग्राम प्रति 100 लीटर का फाॅलियर स्प्रे करना चाहिए। सीलिसिक अम्ल का पहला छिड़काव बालियां निकलते समय और दूसरा छिड़काव दूधिया अवस्था में किया जाना चाहिए। 
  • गेहूं  व जौ की फसल में आवश्यकतानुसर बार–बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके अलावा 0.2 प्रतिशत म्यूरेट ऑफ पोटाश या 0.2 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट का 15 दिनों के अंतराल में दो बार छिड़काव किया जा सकता है। 
  • गेहूं व जौ की फसलों में बाली आने पर एस्कॉर्बिक अम्ल के 10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इससे अधिक तापमान होने पर भी फसल को नुकसान नहीं होता है। 
  • बढ़ते तापमान के कारण गेहूं की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप भी हो सकता है। इसके नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर दो बार 10 से 12 दिनों के अंतराल में छिड़काव करना चाहिए। 
  • इसके अलावा समय पर फसल की सिंचाई करके और उचित कृषि तकनीकों का इस्तेमाल करके गेहूं व जौ की फसलों को बढ़ते हुए तापमान से बचाया जा सकता है। 

नोट : किसानों को सलाह दी जाती है कि फसलों पर किसी भी प्रकार की रासायनिक दवा का इस्तेमाल करने से पहले अपने क्षेत्र के कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञों से सलाह अवश्य लेनी चाहिए और इसके बाद ही दवा का फसलों पर प्रयोग करना चाहिए।

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