मार्च माह के कृषि कार्य : गेहूं, मक्का, सरसों, आलू व गन्ना आदि में होगा लाभ
फसलों की बेहतर पैदावार के लिए उनकी समय-समय पर देखभाल करना बेहद जरूरी होता है। इसके लिए जरूरी है कि फसलों को उनकी आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई-गुड़ाई व रोगों से सुरक्षित किया जाना जरूरी है। इसके लिए किसानों को हम हर माह किए जाने वाले कृषि कार्यों की जानकारी देते हैं ताकि किसान भाइयों को अपनी बोई हुई फसलों का बेहतर उत्पादन मिलने में मदद मिल सके। इसी क्रम में आज हम मार्च माह में किए जाने वाले कृषि कार्यों को बताएंगे जिससे आपको लाभ होगा।
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गेहूं- हल्की सिंचाई करें, कीट व रोगों से बचाएं
- गेहूं की फसल फूल निकलने से लेकर दाने बनने की अवस्था में है। इस समय सिंचाई अवश्य करें, नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है। हल्की सिंचाई 20 दिन के अंतर पर करें। इससे गर्म हवाओं का दाने बनने पर बुरा असर कम होगा तथा तेज हवाओं से फसल गिरेगी भी नहीं।
- गेहूं का मामा (जो एक खरपतवार है) तथा लूज स्मट (अनावृत कंड) रोग से ग्रसित बालियां (जिसमें सभी बालियां काले चूर्ण का रूप ले लेती है एवं उसमें दाने नहीं बनते है) अगर दिखाई पड़े तो उन्हें पोलीथीन के थैली से ढककर तोड़ लें तथा उन्हें जलाकर किसी गड्ढे में दबा कर नष्ट कर दें। साथ ही साथ यह ध्यान रखें कि रोगी बालियों को काटते समय उसका चूर्ण जमीन पर नहीं गिरने दें। इससे तैयार अनाज की गुणवत्ता बढ़ती है।
- काला सिट्टा बीमारी में दानों का सिरा गहरा भूरा या काला हो जाता है। इसकी रोगथाम फूल आने से लेकर फसल पकने तक 800 ग्राम जीनेव (डाथेन जेड 78) या मैनकोजेव (डाथेन एम. 47 ) को 250 लीटर पानी में घोलकर 10-151 दिन के अन्तर पर छिडक़ाव करें।
- बीजाई के समय यदि बीजोपचार नहीं किया हैं तो मार्च माह में बीमारियां नजर आ सकती हैं। रोगरोधी किस्में लगाएं तथा वैविस्टोन 2 ग्राम और 2 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से बीजोपचार करें ।
- चेपा व तेला कीट भी गेहूं की पत्तियों व वालियों से रस चूसते हैं। 12 प्रतिशत वालियों या ऊपर के पत्तों पर 10-12 चेपे का समूह नजर आयें तो 700 मि.ली. एण्डोसल्फान 37 ईसी या 400 मि.ली. मैलाथियान 70 ईसी को 270 लीटर पानी में घोल बना कर फसल पर छिडक़ें।

राई/सरसों- फलियां का रंग सुनहरा होने पर करें कटाई
राई-सरसों की कटाई 75 प्रतिशत फलियों के सुनहरे होने पर करनी चाहिए। इस अवस्था में दानों में तेल की मात्रा अधिक रहती है।
जौ व आलसी- पकते ही करें कटाई, दाना बिखरने से रोकें
जौ व आलसी मार्च माह में पक जाती है तथा पकते ही काट लें नहीं तो फसल झड़ जाती हैं तथा गिर भी जाती हैं। अधिक पैदावार के लिए दानों को बिखरने से रोकें।
शरदकालीन मक्का- फसल को गिरने से बचाएं
- शरदकालीन मक्का में झंडे आने पर बकाया नत्रजन (2 बोरे यूरिया ) पौधे के तनों के पास डालें तथा मिट्टी चढ़ा दें ताकि फसल का गिरने से बचाव हो सके। इस अवस्था में एक हल्की सिंचाई भी करें। बाद में 20 दिन के अन्तर पर सिचाई करते रहें।
- गन्ना- दीमक, कनसुआ व जड़वेधक रोग से करें फसल की सुरक्षा
- गन्ने की फसल को दीमक, कनसुआ व जड़वेधक से बचाव के लिए 2.7 लीटर क्लोरपाइरिफास 20 ईसी या 1.7 लीटर एण्डोसल्फान 35 ईसी का 800 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।
- गन्ने की शरदकालीन व मोठी फसल में 1/3 नत्रजन की दूसरी किश्त (1 बोरा यूरिया) मार्च अन्त तक डाल सकते हैं। यूरिया डालने से पहले खरपतवार निकाले तथा हल्की सिंचाई 10 दिन के अन्तर पर करते रहें।

सूरजमुखी- खेत में नमी बनाए रखें, 30 दिन के अंतर से करें सिंचाई
- सूरजमुखी के खेत में काफी नमी रहनी चाहिए तथा 30 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें इससे दूसरा फायदा कटुआ सुण्डी का पानी में डूबकर मर जाने का है।
- बालों वाली सुण्डी तथा कटुआ सुण्डी को 10 कि.ग्रा. फैनवालरेट 0.4 प्रतिशत पाउडर के धुडे से भी नियंत्रित किया सकता है।
- फूल छेदक सुण्डी के लिए 700 मि.लो. एण्डोसल्फान को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।
चना- फली छेदक कीट की करें रोकथाम
चने की फसल में दाना बनने की अवस्था में फलीछेदक कीट का अत्याधिक प्रकोप होता है। फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए जैविक नियंत्रण हेतु एन.पी. वी. (एच.) 25 प्रतिशत एल. ई. 250-300 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।
मसूर व दाना मटर- पत्ते पीले और पौधे सूखने पर करें कटाई
- मसूर व दाना मटर की फसलों में 77 प्रतिशत फलियां व पत्ते पीले हो जाएं तथा पौधे सूखने लगे तो इन फसलों को दरांती से सावधानीपूर्वक काटें तथा ढेर में रखें।
- पूरा सूखने पर गहाई करें इससे दाने बिखरते नहीं व पैदावार प्राप्त होती हैं।
जायद धान - खेत में जल जमाव बनाए रखें
खेत में जल जमाव बनाए रखें। रोपाई के 25 से 30 दिनों बाद खरपतवार नियंत्रित कर यूरिया का बुरकाव करें। रोपाई के 25 से 30 दिनों बाद कोनोवीडर मशीन को दो पंक्तियों के बीच में आगे-पीछे करते हुए चला दें, इससे खरपतवार नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाती है। साथ ही मिट्टी के हल्का होने से वायु संचार की स्थिति में भी सुधार होता है और पौधों में कल्ले अधिकाधिक संख्या में निकलते हैं।
आलू- पत्ते पीले पडऩे पर करें कोड़ाई
आलू पौधे के पत्ते पीले पडऩे लगे तथा तापमान बढऩे पर हल से कोड़ाई कर देनी चाहिए। कोड़ाई के बाद आलू कन्दों को छप्परवाले घर में फैला कर कुछ दिन रखना चाहिए ताकि छिलके कड़े हो जाए।
भिंडी - फली व तना भेदक कीट से बचाव हेतु करें छिडक़ाव
- कद्दू वर्गीय फसलों में 100-50-50 किग्रा/ हैक्टेयर की दर से नाईट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम की मात्रा डालें। तथा 5-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।
- भिंडी में फली व तना भेदक कीट के नियंत्रण के लिए 2 मिली इमिडाक्लोप्रिड दवा को 10 लिटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।
- भिंडी रस चूसने वाले कीड़ों के नियंत्रण के लिए ट्राइजोफॉस और डेल्टामेथ्रिन 1 मिली दवा / लिटर पानी में घोलकर बारी बारी से 10-15 दिनों के अंतराल पर छिडक़ाव करें।
- घीया, कछू करेला, तोरी- यूरिया दें और अच्छी सिंचाई करें
- पिछले माह लगी घीया, कछू करेला, तोरई की फसल में आधा बोरा यूरिया डालें तथा हर हफ्ते एक अच्छी सिंचाई करते रहें इससे समय पर फूल तथा काफी मात्रा में फल आएंगे। यदि पोधों पर पाउडरी मिल्डयु (पत्तों पर सफेद पाउडर) नजर आए तो 200 ग्राम वैविस्टिन को 200 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें। डाउनी मिल्डयु (पत्तों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे) के लिए 400 ग्राम डाइथेन एम 47 को 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ें। स्प्रे 17 दिन बाद फिर दोहराएं। इस मौसम में कीड़े कम ही लगते हैं फिर भी कोई नजर आये तो 200 ग्राम एण्डोसल्फान 37 ईसी 100 लीटर पानी में घोलकर फसल पर स्प्रे करें। उपरोक्त स्प्रे खरबूज व तरबूज फलों की बेलों पर भी किया जा सकता हैं।
आम- मल्चिंग करना होगा लाभदायक
- इस समय मिट्टी में मौजूद नमी को बनाए रखने के लिए पौधे के तने के चारों तरफ सूखे खरपतवार या काली पोलीथीन की मल्चिंग बिछाना लाभदायक पाया गया है।
- गुजिया- (मिली बग) फलों की निचली सतह, टहनियों तथा फलों पर रस शोषक सफेद कीट समूह, कपासनुमा शरीर के कारण जल्दी ही दिख जाती है। उग्रता की स्थिति में टहनियां सूखने लगती है। इसके प्रबंधन के लिए क्किनॉलफास 2 मि.ली./ली. या मोनो क्रोटोफास 1.5 मि.ली./ली. का छिडक़ाव करना चाहिए।
लीची- फलों को झडऩे से बचाव के लिए करें यह उपाय
- लीची के पौधे पर फल लगने के एक सप्ताह बाद प्लैनोफिक्स (2 मि.ली./4.8 ली.) या एन.ए.ए. (20 मि.ग्रा./ली.) का एक छिडक़ाव करके फलों को झडऩे से बचाएं।
- फल लगने के 15 दिन बाद के बोरिक आम्ल (2 ग्रा./ली.) या बोरेक्स (5 ग्रा./ली.) के घोल का 15 दिनों के अंतराल पर तीन छिडक़ाव करने से फलों का झडऩा कम हो जाता है, मिठास में वृद्धि होती है तथा फल के आकार एवं रंग में सुधार होने के साथ-साथ फल फटने की समस्या भी कम हो जाती है।

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