Published - 01 Jun 2020 by Tractor Junction
ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का स्वागत है। सभी किसान भाई जानते हैं कि कोरोना (कोविड-19) के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी जा रही है। इस वैश्विक महामारी का टीका अभी तक नहीं बन पाया है। ऐसे में सरकार की ओर से सभी लोगों को इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने की सलाह दी जा रही है। आयुर्वेद में इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के लिए अनेक देशी औषधियां बताई गई हैं और इनका प्रयोग चमत्कारिक रहा है। इन औषधियों में एक औषधी है तुलसी। भारत में तुलसी का धार्मिक के साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत महत्व है। तुलसी सैकड़ों प्रकार की बीमारियों में काम आती है। कोविड-19 संक्रमण काल में इसकी मांग बढ़ी है। देश में तुलसी का सैनेटाइजर बन तैयार हो गया है। अब बरसात के मौसम में तुलसी की खेती का सबसे उपयुक्त समय शुरू हो जाएगा। तुलसी की खेती पर सरकार की ओर से सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है। किसान तुलसी की खेती कर मालामाल बन सकते हैं। देश-विदेश में तुलसी के पत्ते, बीज व तेल की भारी मांग है। तो ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से जानते हैं तुलसी की खेती और उसके व्यापार के बारे में।
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तुलसी की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त मौसम बारिश का होता है। तुलसी के नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते हैं। अन्य मौसमों में इसके पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएं भी सुखी नजर आने लग जाती हैं। इसकी खेती, कम उपजाऊ जमीन जिसमें पानी की निकासी का उचित प्रबंध हो, अच्छी होती है। बलूई दोमट जमीन इसके लिए बहुत उपयुक्त होती हैं। इसके लिए उष्ण कटिबंध एवं कटिबंधीय दोनों तरह जलवायु होती है। तुलसी की खेती के लिए खेत को अच्छे से जोतना बहुत जरूरी होता है। किसान को जमीन को अच्छी तरह जोतकर क्यारियां बनानी चाहिए।
तुलसी की खेती बीज द्वारा होती है लेकिन खेती में बीज की बुवाई सीधे नहीं करनी चाहिए। पहले इसकी नर्सरी तैयार करनी चाहिए। बाद में उसकी रोपाई करनी चाहिए। इसके बीज काफी छोटे होते हैं इसीलिए इन्हें रेत या लकड़ी के बुरादे के साथ मिश्रित करके मिट्टी में डाला जाता है। फसल पद्धति की बात करें तो, तुलसी के बीज बहुत ही आसानी से अंकुरित हो जाते हैं। सिंचाई क्षेत्रों में 6-10 सेमी लंबे अंकुरित पौधों की जुलाई या फिर अक्टूबर/ नवंबर माह के समय खेतों में लगाया जाता है। अंकुरित पौधों को 40 सेमी की दूरी पर कतार में लगाया जाना चाहिए और रोपण के तुरंत बाद ही खेत की सिंचाई की जानी चाहिए।
वैसे तो तुलसी के पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता होती है, इसीलिए ज्यादा मात्र में उर्वरक डालने से पौधे को नुकसान हो सकता है अथवा वह जल सकता है या मर सकता है। तुलसी के पौधों में कभी भी बहुत गरम और बहुत सर्द मौसम में उर्वरक नहीं डालना चाहिए। तुलसी की खेती में जैविक उर्वरक और तरल उर्वरक का प्रयोग किया जा सकता है। गोबर की खाद तुलसी के पौधे के लिए सबसे फायदेमंद होती है। 200 से 250 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट को जुताई के समय खेत में बराबर मात्रा में डालनी चाहिए। इसके बाद ही जुताई करें, इससे खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाती है उससे अच्छे परिणाम मिलते है।
तुलसी के पौधों के रोपण के बाद ही मानसून के अंत में सिंचाई प्रबंधन भी किया जा सकता है। दूसरी सिंचाई से पौधे अच्छी तरह से मिट्टी में जम जाते हैं। पौधों के बीच के अंतराल को बनाए रखने और कमजोर पौधों को अलग करने का ये तरीका सही समय पर कर देना चाहिए ताकि खेत में एक समान पौधे रहें। गर्मियों में खेत में तुलसी के पौधों को 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि शेष ऋतुओं की अवधि के दौरान जरूरत के मुताबिक सिंचाई की जा सकती है।
तुलसी को प्रजातियों के अनुसार दो भागों में बांटा जाता है। 1. बेसिल तुलसी या फ्रेंस बेसिल। इसमें स्वीट फेंच बेसिल या बोबई तुलसी, कर्पूर तुलसी, काली तुलसी, वन तुलसी या राम तुलसी, जंगली तुलसी शामिल है। वहीं दूसरी प्रजाति होती है होली बेसिल। इसमें श्री तुलसी या श्यामा तुलसी शामिल है।
तुलसी रोपण के 90-95 दिनों के बाद, फसल प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्ती के उत्पादन के लिए फूलों के प्रारंभिक स्तर पर पत्तियों की तुड़ाई की जाती है। फसल को जमीनी स्तर पर इस तरीके से काटा जाता है कि शाखाओं को काटने के बाद तने फिर से उग आएं। जब पौधों की पत्तियां हरे रंग की होने लगें, तभी अच्छी धूप वाला दिन देखकर इनकी कटाई शुरू कर दें। किसान के लिए सही समय पर कटाई जरूरी है, ऐसा न करने पर तेल की मात्रा पर इसका असर पड़ सकता है। पौधे पर फूल आने के कारण भी तेल मात्रा कम हो जाती है, इसलिए जब पौधे पर फूल आना शुरू हो जाएं,तब इनकी कटाई शुरू कर देना चाहिए। जल्दी नई शाखाएं आ जाएं, इसलिए कटाई 15 से 20 मीटर ऊंचाई से करनी चाहिए।
अक्सर किसान जानना चाहते हैं कि तुलसी का पौधा कितने दिन में उगता है? तो आपको बता दें कि तुलसी का पौधा लगाने के तीन महीने बाद वह बड़ा होकर तैयार हो जाता है। राजस्थान में तुलसी की खेती धीरे-धीरे किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। मीठी तुलसी की खेत भी लोग पंसद कर रहे हैं।
आप सब भली भांति जानते हैं कि कोविड-19 महामारी के विश्वव्यापी प्रकोप के कारण खासतौर पर भारत में प्राचीन घरेलू नुस्खों के तहत तुलसी, गिलोय और अश्वगंधा का सबसे ज्यादा उपयोग हुआ। आयुर्वेदिक काढे में इनका मिश्रण होता है। तुलसी से दवा व कई आयुर्वेदिक काढ़े बाजार में उपलब्ध है। प्रमुख आयुर्वेदिक कंपनियां पतंजलि, डाबर, वैद्यनाथ आदि आयुर्वेद दवाएं बनाने वाली कंपनियां तुलसी की कांटे्रक्ट फार्मिंग करा रही है।
तुलसी की खेती आपने कर ली है और फसल भी अच्छी है। अब आपको सामने सवाल है कि तुलसी कहॉं बेचे?, तुलसी क्या रेट बिकती है? आपको बता दें कि देश में तुलसी के बीज और तेल का बड़ा बाजार उपलब्ध है। हर दिन नए रेट पर तुलसी तेल और तुलसी बीच बेचे जाते हैं। तुलसी का रेट मांग के अनुसार कम व ज्यादा होता रहता है। तुलसी को बेचने के लिए बाजार की जरूरत पडेगी जहां आपको सबसे अधिक मुनाफा हो सकता है। इसके लिए परेशान होने की जरूरत नही है। आजकल देश की नामी कंपनियां कान्ट्रेक्ट फार्मिंग के लिए किसानों से आनलाइन ही संपर्क करती हैं। आप भी इन कंपनियों के संपर्क में रहिए और समय रहते कान्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए आवेदन कर दें। इससे आपको तुलसी बेचने के लिए इधर-उधर बाजार ढूंढने की जरूरत नहीं होगी।
तुलसी की खेती से कमाई का गणित
एक बीघा जमीन पर खेती करने के लिए एक किलो बीज की आवश्यकता होगी। इस प्रकार 10 बीघा जमीन पर 10 किलो बीज लगेंगे। इसकी कीमत 3 हजार रुपए के करीब होगी। इसके अलावा खेत में 10 से 15 हजार रुपए की खाद लगेगी। साथ ही खेत में सिंचाई के साधन होने चाहिए। एक सीजन में 8 क्विंटल तक पैदावार होती है। किसान तुलसी की पत्तियां, बीज, तुलसी तेल को बेचकर भारी लाभ कमा सकते हैं।
देश में नेशनल बोटानिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुरूप कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए तुलसी के तेल जैसे हर्बल तत्वों से युक्त एक अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर बनाया है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला एनबीआरआई ने इस हैंड सैनिटाइजर को सीएसआईआर के अरोमा मिशन के तहत तैयार किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि तुलसी के तेल में कीटाणुओं को मारने में सक्षम प्राकृतिक रूप से रोगाणु-रोधी गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा, सैनिटाइजर में 60 प्रतिशत आइसोप्रोपिल अल्कोहल का उपयोग किया गया है। इस उत्पाद की रोगाणु-रोधी गतिविधि के लिए इसका वैज्ञानिक रूप से परीक्षण भी किया गया है।
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