Published - 10 Oct 2020 by Tractor Junction
किसान अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए कई विकल्प तलाशता रहता है। इसके लिए वे पशुपालन, मत्स्य पालन व कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आदि विकल्पों को अपनाकर पैसा कमाने की सोचता है। इसी का फायदा उठाकर कई नकली कंपनियां किसानों को लुहावने प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा लेती है और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम पर किसानों से पैसा लेकर भाग जाती है। ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में कुछ अशासकीय संस्थाओं एवं फर्मों द्वारा मत्स्य कृषकों की भूमि पर तालाब निर्माण करवाकर मछली पालन का व्यवसाय करने के संबंध में प्रलोभन दिए जाने की शिकायत कृषि विभाग को मिली है। इन संस्थाओं द्वारा मत्स्य कृषकों से एक बड़ी राशि लेकर उनकी भूमि पर मछली पालन का व्यवसाय करने एवं उन्हें एक निश्चित मासिक आय की भी लालच दी जा रही है। कान्ट्रेक्ट फार्मिंग या राशि दोगुना करने का प्रस्ताव अशासकीय संस्थाओं एवं फर्मों द्वारा किसानों को दिया जा रहा है।
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छत्तीसगढ़ मछली पालन विभाग ने जानकारी देते हुए बताया कि विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों एवं प्रचार सामग्रियों से पता चला है कि कुछ संस्थाओं के द्वारा किसानों से मत्स्य पालन कार्य के लिए बड़ी धनराशि लेकर अंनुबंध कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ) एवं मत्स्य पालन कार्य में भूमि तथा धनराशि का निवेश करने के लिए प्रचार-प्रसार करते हुए अधिक एवं निश्चित मासिक आय का प्रलोभन दिया जा रहा है।
संचालक मछली पालन ने आमजन से अपील की है कि मत्स्य पालन के क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति अथवा संस्थान के द्वारा दिए गए ऐसे प्रलोभन से बचें तथा इस प्रकार के अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) अथवा मत्स्य पालन कार्य में निवेश करने से पहले ऐसी संस्थाओं और उनके द्वारा किए रहे अनुबंध शर्तों का सतर्कतापूर्वक परीक्षण करें, और अनुबंध के वैधानिक एवं आर्थिक पक्षों का भली-भांति परीक्षण व विचार कर स्वयं के विवेक एवं व्यक्तिगत जिम्मेदारी से निर्णय लें। भविष्य में निवेशक को किसी प्रकार की क्षति या नुकसान होता है तो उसके लिए यह विभाग जिम्मेदार नहीं होगा।
ठगी करने वाली कंपनियां समाचार पत्रों में लुहावने वादों और अधिक आय या मुनाफा कमाने का लालच देकर किसानों को अपने जाल में फंसाती है और योजना को सरकारी बताती है जिस पर भोला-भाला गांव का किसान जल्द विश्वास कर लेता है। ये अपना आफिस भी काफी अच्छा बनाती ताकि किसानों को पूर्ण विश्वास हो जाए कि कंपनी फर्जी नहीं है। इसके बाद ये किसानों से पैसा डिपोजिट करने को कहती है और कॉन्टैक्ट पर साइन करा लेती है।
कंपनियों के कॉन्टैक्ट लेटर प्राय: अंग्रेजी भाषा में होते हैं जिसे कम पढ़ा लिखा किसान समझ नहीं पाता है और इसी का ये फायदा उठाती है। इसके बाद किसान से ये मोटी रकम वसूलती है। कई बार ये रकम किस्तों में ली जाती है। जब ऐसे दस-बीस किसान उनके जाल में फंस जाते हैं और फर्जी कंपनियों के पास काफी पैसा इक्ट्ठा हो जाता है तो वे भाग जाती है। रातों रात ऑफिस भी बंद कर दिया जाता है। अब किसान अपने आप को ठगा महसूस करता है और हाथ मलता रह जाता है। किसान के पास कोई सबूत भी नहीं होता जिससे वह उसके खिलाफ कार्रवाई कर सके, क्योंकि कॉन्टैक्ट साइन करवाते समय ये कंपनियां पहले ही अपने बचाव में ऐसी शर्तों पर किसान से साइन करवा लेती है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो ही नहीं पाती।
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