Published - 22 Jul 2021 by Tractor Junction
गाजर घास (Parthenium hysterophorus) को पर्यावरण के लिए बुरा माना जाता है वहीं पशु भी इस घास को खाना पसंद नहीं करते है। इस घास के परागकण से एग्जिमा, अस्थमा और त्वचा की बीमारियां हो सकती हैं। इसके एक पौधे से 25 हजार बीज पैदा होते हैं जो कृषि की पैदावार को प्रभावित करते हैं। सही कारण है कि बारिश के मौसम में ये घास अपने आप ही जगह-जगह उग जाती है लेकिन इसका उपयोग नहीं होने से किसान इसे काटकर खेत के बाहर फेंक देते हैं या इसे रासायनिक तरीकों से नष्ट कर देते हैं। लेकिन अब इस गाजर घास का एक अनूठा उपयोग वैज्ञानिकों ने खोज लिया है जिससे अब गाजर घास का उपयोग खेती के लिए विशिष्ट कम्पोस्ट खाद निर्माण में किया जाएगा। इससे एक ओर गाजर घास का उपयोग हो सकेगा वहीं दूसरी ओर किसानों को प्राकृतिक और सस्ती खाद उपलब्ध हो सकेगी। हाल ही में जिला पर्यावरण समिति उदयपुर और फॉस्टर भारतीय पर्यावरण सोसायटी इंटाली के संयुक्त तत्वावधान में गाजर घास से विशिष्ट कम्पोस्ट खाद निर्माण तकनीक का आविष्कार किया गया है।
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नेशनल नवाचार खोज कार्यक्रम के तहत उदयपुर जिले के कुराबड़ गांव निवासी असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार आमेटा ने अपने शोध पत्र में दो साल के अथक प्रयास से विश्व पर्यावरण की समस्या बनी गाजर घास का समाधान कर एक विशिष्ट कम्पोस्ट खाद का निर्माण किया। इस तकनीक से बनी खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम की मात्रा साधारण हरित खाद से तीन गुना आंकलन अधिक किया गया, जो किसानों के लिए एक वरदान सिद्ध होगा। वर्तमान में मेवाड़ यूनिवर्सिटी गंगरार चित्तौडग़ढ़ में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत डॉ. आमेटा के इस शोध से गाजर घास के उन्मूलन और इससे किसानों को जैविक खाद की प्राप्ति दोनों रूप में फायदा मिलेगा। बता दें कि डॉ. सतीश आमेटा का यह शोध ईरान की एक प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। इससे प्राप्त जानकारी से काश्तकार गाजर घास (पार्थेनियम) को फसल के खाद रूप में उपयोग ले सकते हैं जो पर्यावरण को सुरक्षित रखेगा।
इस तकनीक में व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे गोबर, सूखी पत्तियां, फसलों के अवशेष, राख, लकड़ी का बुरादा आदि का एक भाग एवं चार भाग गाजर घास को इस अनुपात में मिलाकर लकड़ी के बनाए एक डिब्बे में भरा जाता है। इस डिब्बे के चारों ओर छेद किये जाते हैं, ताकि हवा का प्रवाह समुचित बना रहे और गाजर घास का खाद के रूप में अपघटन शीघ्रता से हो सकें। इसमें रॉक फॉस्फेट एवं ट्राइकोडर्मा कवक का प्रयोग करके खाद में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। इस तरह निरंतर पानी का छिडक़ाव कर एवं इस मिश्रण को निश्चित समयांतराल में पलट कर हवा उपलब्ध कराने पर मात्र 2 महीने में गाजर घास से जैविक खाद का निर्माण किया जा सकता है।
शोध के मुताबिक गाजरघास से बनी कम्पोस्ट में मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा गोबर से दोगुनी व केंचुआ खाद के लगभग होती है। ऐसे में गाजर घास की खाद बेहतर विकल्प बन सकती है। गाजर घास में नाइट्रोजन 1.05, फॉस्फोरस 10.84, पोटेशियम 1.11, कैल्शियम 0.90 तथा मैग्नीशियम 0.55 प्रतिशत पाया जाता है जबकि केंचुआ खाद में नाइट्रोजन 1.61, फॉस्फोरस 0.68, पोटेशियम 1.31, कैल्शियम 0.65 तथा मैग्नीशियम 0.43 प्रतिशत होता है। वहीं गोबर खाद में नाइट्रोजन 0.45, फॉस्फोरस 0.30, पोटेशियम 0.54, कैल्शियम 0.59 तथा मैग्नीशियम 0.28 प्रतिशत पाया जाता है। इस प्रकार से देखा जाए पोषक तत्वों की मात्रा गाजर घास में अधिक होती है।
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