प्रकाशित - 23 May 2025
ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
गन्ने की खेती करने वाले किसानों को इस समय सचेत रहने की आवश्यकता है, ऐसा इसलिए कि इन दिनों गन्ने की फसल पर काला चिकटा रोग का प्रकोप देखा जा रहा है। यह रोग गन्ने की बढ़वार को प्रभावित करता है। इसके प्रभाव से गन्ने की ग्रोथ रूक जाती है और पत्तियों में छेद हो जाते हैं जिससे फसल को नुकसान होता है। यदि रोग का प्रकोप अधिक हो तो पूरी की पूरी फसल तक खराब हो जाती है। यदि आप किसान हैं तो आपके लिए इसके बारे में जानना बेहद जरूरी हो जाता है, तो आइए जानते हैं, क्या है काला चिकटा रोग, इसके लक्षण और इस रोग की रोकथाम के उपाय।
अभी के मौसम में कई जगहों पर गन्ने की फसल में ब्लैक बग या काला चिकटा कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है। इसे देखते हुए गन्ना एवं चीनी विभाग, उत्तर प्रदेश की ओर से किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में गन्ने की फसल में कीट एवं रोग संबंधी समस्याओं के नियंत्रण के लिए वैज्ञानिकों की टीम से स्थानीय निरीक्षण कर गन्ना क्षेत्रों का आंकलन कराया जा रहा है। जिसमें गन्ने की फसल में ब्लैक बग या काला चिकटा का संक्रमण देखा जा रहा है। कई खेतों में ब्लैक बग के साथ–साथ पायरिया रोग भी देखा गया है। इसे देखते हुए गन्ना शोध परिषद द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार किसानों, विभागीय अधिकारियों एवं चीनी मिलों को ब्लैक बग नियंत्रण के लिए एडवाइजरी जारी की गई है।
गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने बताया कि काला चिकटा एक चुसक कीट है। इसका प्रकोप अधिक तापमान व शुष्क मौसम में आमतौर पर अप्रैल से जून महीने के दौरान होता है। इसका प्रकोप पेड़ी गन्ना में अधिक होता है। जबकि पौधा फसल में कम दिखाई देता है। रोगों से प्रभावित गन्ने की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और उन पर कत्थई रंग के धब्बे पाए जाते हैं। इसके शिशु पत्रकुंचक एवं गन्ने के गोफ के बीच में पाए जाते हैं। प्रौढ़ तथा शिशु कीट दोनों पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे गन्ने की वृद्धि रुक जाती है। वहीं रोग का प्रभाव अधिक होने पर पत्तियों में छेद हो जाते हैं।
किसान ब्लैक बग कीट नियंत्रण के लिए नीचे दिए गए कुछ उपाय करके इस कीट–रोग पर नियंत्रण कर सकते हैं, यह उपाय इस प्रकार से है–
गन्ने की फसल को ब्लैक बग या काला चकटा कीट के अलावा भी कई प्रकार के अन्य कीटों का प्रकोप भी होता है। इसमें दीमक, सफेद गिडार, जड़ बेधक (रूट बोरर), अंकुर बेधक, चोटी बेधक (टाप सूट बोरर), कडुआ रोग (चाबुक कडुआ), तना बेधक (स्टेम बोरर), गुरूदासपुर बेधक, पोरी बेधक (इन्टर नोड बोरर) शामिल हैं। इनका प्रकोप अलग-अलग समय या महीनों में होता है। ऐसे में किसानों को इन कीटों से अपनी फसल के उपाय करने चाहिए। फसल पर किसी भी रासायनिक दवा का छिड़काव करने से पहले अपने निकटतम कृषि विभाग से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। दवा का छिड़काव किसी जानकार या विशेषज्ञ के मार्गदशन में करना ही सही रहता है।
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