जौ की उन्नत खेती : इन किस्मों से मिलेगा अधिक उत्पादन, कम लागत में भरपूर मुनाफा

Share Product Published - 09 Oct 2020 by Tractor Junction

जौ की उन्नत खेती : इन किस्मों से मिलेगा अधिक उत्पादन, कम लागत में भरपूर मुनाफा

कम पानी और सीमित संसाधन में भी हो सकती है जौ की खेती

खाद्यान्न में जौ का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। ये मुख्यत: रूस, यूक्रेन, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में पैदा होता है। जौ का उपयोग खाने के अलावा धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। भारतीय संस्कृति में तो जौ का स्थान सबसे अधिक है। कोई भी त्योहार या शुभ कार्य हो उसमें जौ का प्रयोग अतिशुभ माना जाता है और इसके बिना धार्मिक अनुष्ठान भी अधूरे माने जाते हैं। हिंदू धर्म में जौ का बड़ा महत्व है। धार्मिक अनुष्ठानों, शादी-ब्याह होली में लगने वाले नव भारतीय संवत् में नवा अन्न खाने की परंपरा बिना जौ के पूरी नहीं होती है। जौ का उपयोग बेटियों के विवाह के समय होने वाले द्वाराचार में भी होता है। घर की महिलाएं वर पक्ष के लोगों पर अपनी चौखट पर मंगल गीत गाते हुए दूल्हे सहित अन्य लोगों पर इसकी बौछार करना शुभ मानती हैं। मृत्यु के बाद होने वाले कर्मकांड तो बिना जौ के पूरे नहीं हो सकते है। ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है। इस तरह जौ भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से रचा बसा हुआ है। अब बात करें इसके उत्पादन की तो इसकी खेती सीमित संसाधनों में की जा सकती है। इसकी खेती में पानी गेहूं की अपेक्षा कम खर्च होता है। वहीं ये सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। यदि व्यवसायिक रूप से इसकी खेती की जाए तो इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

 

सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1


जौ के विभिन्न उपयोग

जौ का उपयोग रोटी, सत्तु, बिस्कुट, स्वास्थ्यवर्धक पेय व दवाइयां बनाने में किया जाता है। वहीं इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के मादक पेय जैसे शराब आदि बनाने में भी किया जाता है। इसके अलावा विशेषकर दुधारु पशुओं को यह हरा चारा, सूखी भूसी, साइलेज व फीड के रूप में खिलाया जाता है।


जलवायु एवं भूमि

जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन समशीतोष्ण जलवायु में भी इसकी खेती सफलतापू्र्वक की जा सकती है । जौ की खेती समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है। जौ की खेती के लिए ठंडी और नम जलवायु उपयुक्त रहती है। जौ की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 35-40 डिग्री, उच्चतम तापमान 72-86 डिग्री और उपयुक्त तापमान 70 डिग्री होता है। वैसे तो इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती मध्यम दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है।

 


बुवाई का समय

इसकी बुवाई का समय जौ की खेती हेतु बुवाई का उचित समय नवंबर के प्रथम सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक होता है। लेकिन देरी होने पर बुवाई मध्य दिसंबर तक की जा सकती है।


जौ की प्रजातियां

जौ की दो प्रजातियां हैं- पहली होरडियम डिस्टिन जिसकी उत्पत्ति मध्य अफ्रीका और दूसरी प्रजाति होरडियम वलगेयर है जिसका उत्पत्ति स्थल यूरोप माना जाता है। इन दोनों प्रजातियों में इसकी द्वितीय प्रजाति अधिक प्रचलित है।


जौ की उन्नत किस्में

सिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई के लिए

डी डब्लू आर बी- 52, डी एल- 83, आर डी- 2668, आर डी- 2503, डी डब्लू आर- 28, आर डी- 2552, बी एच- 902, पी एल- 426 (पंजाब), आर डी- 2592 (राजस्थान) आदि किस्में प्रमुख है।

सिंचित क्षेत्रों में देर से बुआई के लिए

आर डी- 2508, डी एल- 88 आदि किस्में प्रमुख है।
असिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई- आर डी- 2508, आर डी- 2624, आर डी- 2660, पी एल- 419 (पंजाब) आदि किस्में प्रमुख है।

क्षारीय एवं लवणीय भूमि के लिए

आर डी- 2552, डी एल- 88, एन डी बी- 1173 आदि किस्में प्रमुख है।
माल्ट जौ - बी सी यु- 73 अल्फा- 93, डी डब्लू आर यु बी- 52 आदि किस्में प्रमुख है।
पशु चारा के लिए - आर डी- 2715, आर डी- 2552 आदि किस्में प्रमुख है।


जौ और गेहूं में अंतर

जौ एक अनाज अनाज है जो घास की प्रजातियों से संबंधित है होर्डेम वुल्गारे। यह चौथी सबसे अधिक वैश्विक उत्पादन और पहले घरेलू अनाज में से एक के साथ कृषि जिंस है। जौ का एक बड़ा हिस्सा मानव उपभोग के साथ-साथ पशु उपभोग के लिए उगाया जाता है। यह कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, आहार फाइबर, विटामिन बी, विटामिन सी, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जस्ता और फोलेट में उच्च माना जाता है। वहीं गेहूं का अनाज विटामिन, प्रोटीन और खनिजों का एक केंद्रित स्रोत है, जबकि परिष्कृत अनाज ज्यादातर स्टार्च में केंद्रित है।


खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका

जौ की खेती ( जई की खेती ) करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। जौ की खेती के अच्छे जल निकास वाली भूमि अच्छी रहती है इसलिए खेत में ऐसी व्यवस्था करें कि पानी का निकास भलीभांति हो सके। एक एकड़ में इसकी बुवाई करने के लिए 30-40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। कीड़ों एवं बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए बुवाई से पूर्व बीज को उपचारित करना आवश्यक होता है। कंडुआ व स्मट रोग की रोकथाम के लिए बीज को वीटावैक्स या मैन्कोजैब 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। दीमक की रोकथाम के लिए 100 किलोग्राम बीज को क्लोरोपाइरीफोस 20 ई सी की 150 मिलीलीटर द्वारा बीज को उपचारित किया जाना चाहिए। इसके बाद खेत में बीज बीजवपित्र से, या हल के पीछे कूड़ में, नौ नौ इंच की समान दूरी की पंक्तियों में बुवाई चाहिए।

 


खाद एवं उर्वरक

इसके लिए खाद एवं उर्वरक की बता करें तो इसके लिए प्रति एकड़ इसे 40 पाउंड नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जो हरी खाद देने से पूर्ण हो जाती है। अन्यथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा कार्बनिक खाद - गोवर की खाद, कंपोस्ट तथा खली - और आधी अकार्बनिक खाद - ऐमोनियम सल्फेट और सोडियम नाइट्रेट - के रूप में क्रमश: बोने के एक मास पूर्व और प्रथम सिंचाई पर देनी चाहिए। असिंचित भूमि में खाद की मात्रा कम दी जाती है। आवश्यकतानुसार फॉस्फोरस भी दिया जा सकता है।


सिंचाई / निराई गुड़ाई

प्रथम सिंचाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए। पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई का काम करना चाहिए। खेत में उग आए खरतवारों खुरपी की सहायता से हटाना चाहिए। दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन बाद की जा सकती है। तीसरी सिंचाई फूल आने पर एवं चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने पर करनी चाहिए। इस प्रकार चार-पांच सिंचाई इसके लिए पर्याप्त होती है।


कटाई और प्राप्त उपज

जब पौधों का डंठल बिलकुल सूख जाए और झुकाने पर आसानी से टूट जाए, जो मार्च अप्रैल में पकी हुई फसल को काटना चाहिए। फिर गट्ठरों में बांधकर शीघ्र मड़ाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि इन दिनों तूफान एवं वर्षा का अधिक डर रहता है। बात करें इसकी प्राप्त उपज की तो एक हैक्टेयर क्षेत्र में 35 से 50 क्विंटल दाने एवं 50 से 75 क्विंटल भूसे की उपज प्राप्त की जा सकती है।


जौ का भाव

केंद्र सरकार की ओर से जौ का 2021 व 2022 के लिए समर्थन मूल्य 1600 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है जो पिछले साल से 75 रुपए ज्यादा है। पिछले साल जौ का समर्थन मूूल्य 1525 रुपए प्रति क्विंटल था। जबकि बाजार भाव समर्थन मूल्य से अधिक ही होते हैं। श्री गंगानगर मंडी में 19 मार्च 2020 में जौ का भाव 1875 रुपए प्रति क्विंटल था। अगले साल जौ का बाजार भाव क्या रहता है ये बाजार का रूख तय करेगा।

ट्रैक्टर  उद्योग अपडेट के लिए हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करें-
https://t.me/TJUNC

 

अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।

Quick Links

Call Back Button
scroll to top
Close
Call Now Request Call Back