बकरी पालन : बकरी की इन तीन नस्लों को मिली राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

Share Product प्रकाशित - 12 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

बकरी पालन : बकरी की इन तीन नस्लों को मिली राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

जानें, कौनसी है ये नई नस्लें और इसके पालन से लाभ

ग्रामीण इलाकों में लोग बकरी पालन करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं। बाजार में बकरी के दूध और मांस की बढ़ती मांग के कारण आज बकरी पालन एक बहुत बड़े बिजनेस के रूप में उभर रहा है। बकरी पालन बिजनेस के लिए सरकार से भी लोन और सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। बकरी पालन बिजनेस शुरू करने से पहले हमें बकरियों की नस्लों के बारें में भी जानकारी होना बेहद जरूरी है क्योंकि बिजनेस में माल के रूप में हमारे पास बकरियां ही होती है। ये बिजनेस बकरियों की नस्लों पर निर्भर करता है। यदि बकरियों की उन्नत नस्लों का चयन किया जाए तो इससे अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। हाल ही में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वैज्ञानिकों ने बकरी की तीन नई नस्लों की पहचान की है और इसका पंजीयन राष्ट्रीय राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के अंतर्गत करवाया गया है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पाेस्ट में आपको बकरी की इन नई नस्लों और उनसे होने वाले लाभों की जानकारी दे रहे हैं।  

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कौनसी हैं बकरी की ये तीन नई नस्लें

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वैज्ञानिकों द्वारा बकरी की तीन नई नस्लों की पहचान की गई है। इनमें राजस्थान की सोजत, गूजरी, करौली बकरी की पहचान की गई है। बकरी पालन के क्षेत्र में विश्वविद्यालय के अधीनस्थ पशु उत्पादन विभाग ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसी के साथ बकरी पालन की इन तीन नई नस्लों का राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकरण भी करवाया गया है। ये तीनों नस्लें राजस्थान के अलग-अलग जिलों में पाई जाती हैं। इन नस्लों के पंजीयन के बाद विश्वविद्यालय अधिकारिक रूप से इन नस्लों के शुद्ध वंशक्रम कर कार्य कर पाएगा जिससे प्रदेश के बकरी पालकों को इन नस्लों के शुद्ध पशु प्राप्त हो सकेंगे जो बकरी पालन के क्षेत्र को एक नई पहचान दिलाएगा।

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बकरी पालन के लिए नई नस्ल सोजत बकरी (Goat Farming)

बकरी की सोजत नस्ल उत्तर-पश्चिम शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्र में पाई जाने वाली नस्ल है। इसका उद्‌गम स्थल सोजत और उसके आसपास का क्षेत्र है। इस नस्ल का मूल क्षेत्र पाली जिले की सोजत और पाली तहसील, जोधपुर जिले की बिलाड़ा तथा पीपाड़ तहसील हैं। यह नस्ल राजस्थान के पाली, जोधपुर, नागौर और जैसलमेर जिलों तक फैली हुई है। सोजत नस्ल राजस्थान की अन्य मौजूदा नस्लों से काफी अलग है। इस नस्ल में कई ऐसी विशेषताएं पाई जाती है जो बकरी पालकों द्वारा पसंद की जाती हैं। बकरीद के दौरान इस नस्ल के बकरों का अच्छा मूल्य मिलता है क्योंकि यह अन्य बकरियों की नस्लों में सबसे सुन्दर नस्ल की बकरी मानी जाती है। सोजत बकरी की नस्ल की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं।

  • यह नस्ल की बकरी की त्वचा गुलाबी रंग की होती है और इसके कान लंबे होते हैं। 
  • इस नस्ल की बकरी का आकार मध्यम होता है और इसके शरीर पर सफेद रंग में भूरे धब्बे होते हैं।
  • इसके कान लंबे लटके हुए होते हैं और इसके सींग ऊपर की ओर मुड़े हुए होते हैं। 
  • सोजत नस्ल की बकरी के हल्की दाढ़ी पाई जाती है।
  • यह नस्ल मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती है। इसका दुग्ध उत्पादन कम होता है। 

ऐसा माना जा रहा है कि इस नस्ल के पंजीकरण के बाद देश और राज्य को इसके शुद्ध जर्मप्लाज्म गैर-वर्णित वंशकरण में सुधार होगा।

बकरी पालन के लिए नई नस्ल गूजरी बकरी

बकरी की नई नस्ल गूजरी राजस्थान के अर्द्धशुष्क पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस नस्ल की बकरियों को जयपुर, अजमेर और टौंक जिलों और नागौर तथा सीकर जिले के कुछ हिस्सों में देखा जा सकता है। इस नस्ल की बकरी को दूध और मांस के लिए पाला जाता है। इस नस्ल में भी कई विशेषताएं पाई जाती है जो इसे अन्य बकरियों की नस्ल से अलग पहचान देती है। इस नस्ल का मूल क्षेत्र नागौर जिले की कुचामन और नावा तहसील है। गूजरी बकरी की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं।

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  • इस नस्ल की बकरी अन्य नस्लों की तुलना में आकार में बड़ी होती है। 
  • इस नस्ल की बकरी का रंग मिश्रित भूरा सफेद होता है। इस बकरी का सफेद रंग का चेहरा, पैर, पेट और पूरे शरीर पर भूरे रंग के धब्बे होते हैं जिससे यह दूसरी नस्लों से भिन्न नजर आती है।
  • इसके नर को मांस के लिए पाला जाता है। इस  नस्ल का दूध उत्पादन अधिक होता है। 
  • सिरोही बकरी की तुलना में इसकी पीठ सीधी होती है जो पीछे की ओर झुकी हुई होती है।

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बकरी पालन के लिए करौली बकरी

इस नस्ल की बकरी राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी आद्र मैदानी इलाकों में पाई जाती है। यह इस क्षेत्र की स्वदेशी नस्ल है। इस नस्ल का मूल क्षेत्र करौली जिले की सपोटरा, मान्डरेल तथा हिंडौन तहसीलें हैं। यह नस्ल करौली, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी और बारां जिलों तक फैली हुई है। इस नस्ल को मुख्य रूप से मीना समुदाय द्वारा पाला जाता है। बकरी की करौली बकरी नस्ल की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं।

  • इस नस्ल की बकरी के चेहरा, कान, पेट और पैरों पर भूरे रंग की पट्टियों के साथ बकरी के रंग का पैटर्न काला है। 
  • इस नस्ल की बकरी के कान लम्बे, लटके हुए तथा कानों की सीमा पर भूरे रंग की रेखाओं से मुड़े होते हैं और इसकी नाक रोमन होती है। 
  • इस बकरी के मध्यम आकार के सीेंग होते हैं जो कि ऊपर की ओर नुकीले होते हैं। 
  • इस नस्ल के पंजीकरण से गैर-वर्णित नस्ल में सुधार होगा और इस नस्ल को बढ़ावा मिलेगा। 

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